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गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

द्वारा Dharamvir Bharati 2009 257 पृष्ठ
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Plot Summary

इलाहाबाद की सुबहें

शहर की ताजगी, युवा मन की हलचल।

इलाहाबाद की सुबहें अपने रंगीन फूलों, ताजगी और हल्के-हल्के झोंकों के साथ एक नई शुरुआत का आभास देती हैं। इसी शहर में चन्दर, एक होनहार रिसर्च स्कॉलर, अपने दोस्तों के साथ जीवन के अर्थ, प्रेम और कविता पर बहस करता है। शहर की विविधता, उसकी गलियाँ, पार्क, और लोगों की सहजता, चन्दर के मन में एक अनकही बेचैनी और जिज्ञासा भर देती है। यह सुबहें न केवल शहर की, बल्कि चन्दर के जीवन की भी नई शुरुआत हैं, जहाँ वह अपने भविष्य, रिश्तों और खुद के अस्तित्व को लेकर सोचता है। इस माहौल में दोस्ती, बहस, और जीवन के प्रति मासूम उत्साह की झलक मिलती है, जो आगे चलकर गहरे भावनात्मक द्वंद्व में बदलने वाली है।

सुधा और चन्दर का संसार

मासूम दोस्ती, अनकहा स्नेह, घरेलू अपनापन।

सुधा और चन्दर का रिश्ता बचपन की मासूमियत से शुरू होकर गहरे स्नेह में बदल जाता है। सुधा, डॉक्टर शुक्ला की बेटी, और चन्दर, उनके शिष्य, एक-दूसरे के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं। दोनों के बीच अधिकार, अपनापन और एक अनकहा अनुशासन है, जो बिना बोले ही सब कुछ कह जाता है। सुधा की शरारतें, चन्दर की डाँट, और दोनों का एक-दूसरे के लिए चिंता करना, उनके रिश्ते को एक अनूठी ऊँचाई देता है। यह संसार इतना स्वाभाविक है कि दोनों को खुद भी पता नहीं चलता कि कब दोस्ती, स्नेह और जिम्मेदारी में बदल गई। यह अध्याय रिश्तों की नाजुकता और गहराई को दर्शाता है।

बिनती और पम्मी का प्रवेश

नई स्त्रियाँ, नए रंग, नए द्वंद्व।

कहानी में बिनती और पम्मी के प्रवेश से नए भावनात्मक रंग जुड़ते हैं। बिनती, सुधा की बहन, गाँव की सीधी-सादी लड़की है, जो अपनी मासूमियत और पीड़ा के साथ कहानी में संवेदना लाती है। वहीं पम्मी, एक एंग्लो-इंडियन युवती, आधुनिकता, स्वतंत्रता और अकेलेपन का प्रतीक है। पम्मी के साथ चन्दर का रिश्ता दोस्ती से शुरू होकर आकर्षण और जटिलता में बदलता है। इन दोनों स्त्रियों के आने से चन्दर के जीवन में नए द्वंद्व, आकर्षण और जिम्मेदारियाँ जन्म लेती हैं, जो आगे चलकर उसकी आत्मा को झकझोर देती हैं। यह अध्याय स्त्री-पुरुष संबंधों की विविधता और जटिलता को उजागर करता है।

दोस्ती, बहस, और प्रेम

युवाओं की बहस, प्रेम की परिभाषा।

चन्दर, उसके दोस्त, और सुधा के बीच जीवन, प्रेम, और रिश्तों पर लगातार बहसें होती हैं। प्रेम को लेकर सबकी अपनी-अपनी परिभाषाएँ हैं—किसी के लिए वह बीमारी है, किसी के लिए कविता, तो किसी के लिए जीवन का सबसे बड़ा सत्य। इन बहसों में चन्दर का मन बार-बार उलझता है, वह खुद को और अपने रिश्तों को समझने की कोशिश करता है। सुधा के साथ उसकी निकटता, पम्मी के साथ उसकी दोस्ती, और बिनती की मासूमियत, सब मिलकर चन्दर के मन में प्रेम, जिम्मेदारी और आत्म-संशय का द्वंद्व पैदा करते हैं। यह अध्याय युवाओं की बेचैनी, जिज्ञासा और प्रेम की तलाश को दर्शाता है।

मासूमियत से मोहभंग

बचपन की दुनिया से वयस्कता की दहलीज।

समय के साथ सुधा और चन्दर के रिश्ते में मासूमियत की जगह जटिलता और मोहभंग ले लेता है। सुधा का विवाह प्रस्ताव, समाज की अपेक्षाएँ, और चन्दर की अपनी असुरक्षाएँ, दोनों को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती हैं जहाँ बचपन की सरलता खो जाती है। अब रिश्तों में अधिकार, त्याग, और दर्द का भाव आ जाता है। सुधा की मासूम शरारतें अब जिम्मेदारी और त्याग में बदल जाती हैं, और चन्दर के लिए यह बदलाव असहनीय हो जाता है। यह अध्याय जीवन के उस मोड़ को दर्शाता है जहाँ मासूमियत का अंत और वयस्कता की शुरुआत होती है।

बिनती की पीड़ा

त्याग, उपेक्षा, और आत्मसम्मान की लड़ाई।

बिनती का जीवन त्याग, उपेक्षा और अपमान से भरा है। माँ की कठोरता, समाज की संकीर्णता, और अपने ही घर में पराया-सा महसूस करना, उसकी पीड़ा को और गहरा कर देता है। उसका विवाह टूट जाता है, और वह खुद को एक बोझ समझने लगती है। चन्दर के प्रति उसका स्नेह भी उसे कोई राहत नहीं देता, क्योंकि वह जानती है कि उसका स्थान कभी सुधा नहीं ले सकती। बिनती की चुप्पी, उसका विद्रोह, और अंततः उसका आत्मसम्मान, उसे एक नई पहचान देता है। यह अध्याय स्त्री की पीड़ा, संघर्ष और आत्मसम्मान की कहानी है।

सुधा का विवाह प्रस्ताव

समाज, परिवार, और आत्मा की आवाज।

सुधा के विवाह का प्रस्ताव आते ही घर का माहौल बदल जाता है। डॉक्टर शुक्ला, बुआजी, और समाज की अपेक्षाएँ, सुधा पर दबाव बनाती हैं। चन्दर के लिए यह क्षण सबसे कठिन है—वह सुधा को खोना नहीं चाहता, लेकिन समाज और परिवार के दबाव के सामने खुद को असहाय पाता है। सुधा भी अपने मन की आवाज और परिवार की जिम्मेदारी के बीच उलझ जाती है। अंततः वह त्याग का रास्ता चुनती है, और चन्दर के कहने पर विवाह के लिए तैयार हो जाती है। यह अध्याय त्याग, जिम्मेदारी, और आत्मा की आवाज के संघर्ष को दर्शाता है।

चन्दर का अंतर्द्वंद्व

आत्ममंथन, अपराधबोध, और जीवन का अर्थ।

सुधा के विवाह के बाद चन्दर गहरे आत्ममंथन में डूब जाता है। उसे अपने फैसलों पर अपराधबोध होता है—क्या उसने सही किया, क्या उसका त्याग सही था, या वह खुद स्वार्थी था? पम्मी के साथ उसका रिश्ता भी उसे संतोष नहीं देता, बल्कि और उलझन में डालता है। वह अपने जीवन, प्रेम, और रिश्तों के अर्थ को समझने की कोशिश करता है, लेकिन हर बार और उलझ जाता है। यह अध्याय आत्मा के गहरे द्वंद्व, अपराधबोध, और जीवन के अर्थ की तलाश को दर्शाता है।

पम्मी की छाया

आधुनिकता, आकर्षण, और अस्थिरता।

पम्मी के साथ चन्दर का रिश्ता दोस्ती से शुरू होकर आकर्षण, वासना, और अंततः अस्थिरता में बदल जाता है। पम्मी की आधुनिकता, स्वतंत्रता, और उसकी अपनी पीड़ा, चन्दर को एक नई दुनिया दिखाती है, लेकिन वह वहाँ भी स्थायित्व नहीं पा पाता। पम्मी के साथ बिताए क्षण उसे क्षणिक सुकून तो देते हैं, लेकिन आत्मा की शांति नहीं। अंततः पम्मी भी उसे छोड़कर चली जाती है, और चन्दर फिर अकेला रह जाता है। यह अध्याय आधुनिकता, आकर्षण, और अस्थिरता के द्वंद्व को दर्शाता है।

बिनती का टूटा सपना

अधूरी इच्छाएँ, समाज की क्रूरता, और नई शुरुआत।

बिनती का विवाह टूटना, माँ का तिरस्कार, और समाज की क्रूरता, उसे तोड़ देती है। लेकिन वह हार नहीं मानती—अपने आत्मसम्मान के साथ जीना सीख जाती है। डॉक्टर शुक्ला उसे पढ़ने के लिए दिल्ली भेज देते हैं, और वह एक नई शुरुआत करती है। चन्दर के साथ उसका रिश्ता अब स्नेह और सम्मान का है, लेकिन उसमें भी एक दूरी है। यह अध्याय अधूरी इच्छाओं, समाज की क्रूरता, और आत्मसम्मान की नई शुरुआत की कहानी है।

सुधा की विदाई

अंतिम मिलन, पीड़ा, और अनकहा प्रेम।

सुधा की बीमारी, उसका अंतिम मिलन, और उसकी मृत्यु, कहानी को चरम पर पहुँचा देती है। चन्दर, डॉक्टर शुक्ला, और बिनती, सब सुधा के चारों ओर एकत्रित होते हैं, लेकिन कोई भी उसे बचा नहीं पाता। सुधा की पीड़ा, उसका त्याग, और उसका अनकहा प्रेम, सबको भीतर तक झकझोर देता है। उसकी मृत्यु के साथ ही सबका जीवन बदल जाता है—डॉक्टर शुक्ला टूट जाते हैं, बिनती मौन हो जाती है, और चन्दर पत्थर-सा हो जाता है। यह अध्याय पीड़ा, त्याग, और अनकहे प्रेम की चरम अभिव्यक्ति है।

अकेलापन और आत्ममंथन

शोक, पछतावा, और जीवन का खालीपन।

सुधा के जाने के बाद सबके जीवन में एक गहरा खालीपन आ जाता है। डॉक्टर शुक्ला पूजा-पाठ छोड़ देते हैं, बिनती खामोश हो जाती है, और चन्दर आत्ममंथन में डूब जाता है। उसे अपने फैसलों पर पछतावा होता है, लेकिन अब कुछ भी बदलना संभव नहीं। जीवन का चक्र चलता रहता है, लेकिन सबके भीतर एक स्थायी शोक और पछतावा रह जाता है। यह अध्याय शोक, पछतावा, और जीवन के खालीपन की कहानी है।

सुधा की बीमारी

अंतिम संघर्ष, जीवन और मृत्यु की जंग।

सुधा की बीमारी उसके जीवन का अंतिम संघर्ष है। डॉक्टर, नर्स, और परिवार सब उसे बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उसकी हालत लगातार बिगड़ती जाती है। सुधा की कराहें, उसकी यादें, और उसका अंतिम संवाद, सबको भीतर तक हिला देता है। चन्दर, बिनती, और डॉक्टर शुक्ला, सब उसकी सेवा में लगे रहते हैं, लेकिन अंततः मृत्यु जीत जाती है। यह अध्याय जीवन और मृत्यु की जंग, और अंतिम संघर्ष की मार्मिकता को दर्शाता है।

अंतिम मिलन

विदाई, क्षमा, और आत्मा का मिलन।

सुधा के अंतिम क्षणों में सब उसके पास होते हैं। वह सबको क्षमा करती है, सबका आशीर्वाद लेती है, और चन्दर से कहती है कि वह जीवन में ऊँचा उठे। सुधा की मृत्यु के साथ ही सबका जीवन बदल जाता है—एक युग का अंत हो जाता है। यह अध्याय विदाई, क्षमा, और आत्मा के मिलन की कहानी है।

राख और नदी

अंतिम संस्कार, स्मृति, और शाश्वत प्रवाह।

सुधा की मृत्यु के बाद चन्दर और बिनती उसकी राख गंगा में प्रवाहित करते हैं। नदी का प्रवाह, राख का बिखरना, और चाँदनी की उदासी, सब मिलकर जीवन की क्षणभंगुरता और स्मृति की शाश्वतता को दर्शाते हैं। चन्दर और बिनती दोनों मौन हैं, लेकिन भीतर एक गहरा तूफान चल रहा है। यह अध्याय अंतिम संस्कार, स्मृति, और जीवन के शाश्वत प्रवाह की कहानी है। यह प्रतीकात्मकता के माध्यम से जीवन के गहरे अर्थ को उजागर करता है।

जीवन का चक्र

समाप्ति, शांति, और नए आरंभ की प्रतीक्षा।

सुधा के जाने के बाद जीवन का चक्र फिर से चलता है। डॉक्टर शुक्ला, बिनती, और चन्दर, सब अपने-अपने तरीके से जीवन को जीने की कोशिश करते हैं। शोक, पछतावा, और स्मृति के बीच, जीवन फिर से आगे बढ़ता है। कहानी समाप्त होती है, लेकिन एक नई शुरुआत की प्रतीक्षा के साथ। यह अध्याय समाप्ति, शांति, और जीवन के चक्र की निरंतरता को दर्शाता है।

Characters

चन्दर

आत्ममंथन, द्वंद्व, और प्रेम का प्रतीक।

चन्दर इस उपन्यास का केंद्रीय पात्र है, जो एक होनहार रिसर्च स्कॉलर, संवेदनशील प्रेमी, और गहरे आत्ममंथन में डूबा युवा है। उसका जीवन दोस्ती, प्रेम, और जिम्मेदारी के बीच झूलता रहता है। सुधा के प्रति उसका स्नेह मासूमियत से शुरू होकर गहरे, जटिल प्रेम में बदल जाता है। पम्मी और बिनती के साथ उसके रिश्ते उसकी अस्थिरता, आकर्षण, और आत्मग्लानि को उजागर करते हैं। चन्दर का मन बार-बार अपने फैसलों, समाज की अपेक्षाओं, और आत्मा की आवाज के बीच उलझता है। अंततः वह अपने अपराधबोध, पछतावे, और अकेलेपन में डूब जाता है, लेकिन उसके भीतर प्रेम, त्याग, और आत्मा की तलाश कभी खत्म नहीं होती।

सुधा

त्याग, मासूमियत, और पीड़ा की प्रतिमूर्ति।

सुधा डॉक्टर शुक्ला की बेटी, चन्दर की सबसे करीबी मित्र और प्रेमिका है। उसका स्वभाव मासूम, शरारती, और बेहद संवेदनशील है। बचपन की दोस्ती धीरे-धीरे गहरे प्रेम में बदल जाती है, लेकिन समाज, परिवार, और जिम्मेदारी के दबाव में वह त्याग का रास्ता चुनती है। विवाह के बाद उसका जीवन पीड़ा, असंतोष, और आत्मसंघर्ष से भर जाता है। वह पूजा, उपवास, और आत्ममंथन में शांति खोजती है, लेकिन अंततः उसकी बीमारी और मृत्यु, उसके त्याग और प्रेम की चरम अभिव्यक्ति बन जाती है। सुधा का चरित्र भारतीय नारी के त्याग, सहनशीलता, और आत्मा की गहराई का प्रतीक है।

बिनती

मासूम पीड़ा, विद्रोह, और आत्मसम्मान।

बिनती, सुधा की बहन, गाँव की सीधी-सादी, लेकिन भीतर से मजबूत लड़की है। उसका जीवन उपेक्षा, अपमान, और त्याग से भरा है। माँ की कठोरता, समाज की संकीर्णता, और विवाह का टूटना, उसे तोड़ देते हैं, लेकिन वह हार नहीं मानती। चन्दर के प्रति उसका स्नेह उसे सहारा देता है, लेकिन उसमें भी एक दूरी है। अंततः वह आत्मसम्मान के साथ जीना सीख जाती है, और अपने लिए एक नई राह चुनती है। बिनती का चरित्र स्त्री की पीड़ा, संघर्ष, और आत्मसम्मान की कहानी है।

डॉक्टर शुक्ला

संरक्षक, आदर्शवादी, और अंततः टूटे हुए पिता।

डॉक्टर शुक्ला, सुधा के पिता और चन्दर के गुरु, एक आदर्शवादी, विद्वान, और संवेदनशील व्यक्ति हैं। वह अपने बच्चों के लिए सब कुछ करते हैं, लेकिन समाज, परिवार, और जिम्मेदारी के दबाव में कई बार असहाय हो जाते हैं। सुधा की मृत्यु के बाद वह टूट जाते हैं, पूजा-पाठ छोड़ देते हैं, और जीवन में शांति खोजने की कोशिश करते हैं। उनका चरित्र भारतीय पिता की जिम्मेदारी, आदर्श, और अंततः असहायता का प्रतीक है।

पम्मी (प्रमिला डिक्रूज)

आधुनिकता, स्वतंत्रता, और अस्थिरता।

पम्मी एक एंग्लो-इंडियन युवती है, जो आधुनिकता, स्वतंत्रता, और अकेलेपन का प्रतीक है। उसका जीवन प्रेम, तलाक, और आत्मसंघर्ष से भरा है। चन्दर के साथ उसका रिश्ता दोस्ती से शुरू होकर आकर्षण, वासना, और अंततः अस्थिरता में बदल जाता है। पम्मी की आधुनिक सोच, उसकी पीड़ा, और अंततः उसका आत्मसमर्पण, कहानी में एक नया रंग जोड़ता है। उसका चरित्र आधुनिक स्त्री की जटिलता, स्वतंत्रता, और अस्थिरता का प्रतीक है।

कैलाश

व्यावहारिकता, जिम्मेदारी, और असंतोष।

कैलाश, सुधा के पति, एक व्यावहारिक, जिम्मेदार, और राजनीतिक सोच वाले व्यक्ति हैं। वह सुधा को समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन दोनों के स्वभाव में अंतर होने के कारण असंतोष बना रहता है। कैलाश का चरित्र भारतीय पुरुष की जिम्मेदारी, व्यावहारिकता, और भावनात्मक असंतोष का प्रतीक है।

बर्टी

पागलपन, प्रेम, और विडंबना।

बर्टी, पम्मी का भाई, एक विचित्र, बीमार, और पागलपन की हद तक प्रेम में डूबा व्यक्ति है। उसकी पत्नी की मृत्यु, बच्ची की मौत, और फूलों के प्रति उसका पागल प्रेम, उसे एक करुण, दयनीय, और विडंबनापूर्ण चरित्र बना देता है। बर्टी का चरित्र प्रेम की विडंबना, पागलपन, और जीवन की असहायता का प्रतीक है।

गेसू

विश्वास, त्याग, और आत्मबल।

गेसू, सुधा की सहेली, एक संवेदनशील, त्यागी, और आत्मबल से भरी लड़की है। उसका प्रेम अधूरा रह जाता है, लेकिन वह हार नहीं मानती। अपने विश्वास, आत्मबल, और त्याग के साथ वह जीवन में आगे बढ़ती है। गेसू का चरित्र प्रेम, विश्वास, और आत्मबल की कहानी है।

बुआजी

परंपरा, कठोरता, और विडंबना।

बुआजी, सुधा और बिनती की बुआ, परंपरा, कठोरता, और समाज की विडंबना का प्रतीक हैं। उनका व्यवहार कभी स्नेही, कभी कठोर, और कभी विडंबनापूर्ण होता है। वह समाज की अपेक्षाओं और अपनी जिम्मेदारियों के बीच उलझी रहती हैं। उनका चरित्र भारतीय परिवार की परंपरा, कठोरता, और विडंबना को दर्शाता है।

बिसरिया

कवि, भावुकता, और असफलता।

बिसरिया, एक कवि, भावुक, और असफल युवक है। उसका जीवन कविता, प्रेम, और असफलता के बीच झूलता रहता है। वह अपने भावुक स्वभाव के कारण कई बार उपहास का पात्र बनता है, लेकिन उसकी संवेदनशीलता कहानी में एक अलग रंग जोड़ती है। बिसरिया का चरित्र भावुकता, कला, और असफलता की कहानी है।

Plot Devices

आत्ममंथन और द्वंद्व

आत्मा की गहराई, अंतर्द्वंद्व, और आत्मविश्लेषण।

'गुनाहों का देवता' की सबसे बड़ी विशेषता इसका आत्ममंथन और द्वंद्व है। पूरी कहानी चन्दर के मन के भीतर चल रहे संघर्ष, अपराधबोध, और आत्मविश्लेषण के इर्द-गिर्द घूमती है। लेखक ने पात्रों के मनोभावों, उनके निर्णयों, और उनके पछतावे को इतनी गहराई से उकेरा है कि पाठक खुद को उन्हीं भावनाओं में डूबा पाता है। कहानी में बार-बार आत्मा की आवाज, समाज की अपेक्षाएँ, और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच टकराव दिखाया गया है। यह द्वंद्व न केवल चन्दर, बल्कि सुधा, बिनती, और अन्य पात्रों के जीवन में भी झलकता है। आत्ममंथन, अपराधबोध, और आत्मविश्लेषण, कहानी को गहराई, जटिलता, और यथार्थता प्रदान करते हैं।

प्रतीकात्मकता और फॉरशैडोइंग

फूल, नदी, राख, और चाँदनी के प्रतीक।

कहानी में फूल, नदी, राख, और चाँदनी जैसे प्रतीकों का बार-बार प्रयोग हुआ है। फूल मासूमियत, प्रेम, और क्षणभंगुरता का प्रतीक हैं; नदी जीवन के प्रवाह, शाश्वतता, और विसर्जन का; राख मृत्यु, अंत, और स्मृति का; और चाँदनी पवित्रता, शांति, और उदासी का। इन प्रतीकों के माध्यम से लेखक ने पात्रों की भावनाओं, उनके रिश्तों, और जीवन के गहरे अर्थ को उजागर किया है। फॉरशैडोइंग के माध्यम से कई बार आने वाली घटनाओं की झलक पहले ही दे दी जाती है, जिससे कहानी में गहराई और सस्पेंस बना रहता है।

संवाद और आंतरिक मोनोलॉग

संवादों की गहराई, आंतरिक विचारों की प्रस्तुति।

कहानी में संवादों और आंतरिक मोनोलॉग का विशेष महत्व है। पात्रों के बीच के संवाद न केवल उनकी भावनाओं, बल्कि उनके मन के भीतर चल रहे द्वंद्व को भी उजागर करते हैं। आंतरिक मोनोलॉग के माध्यम से लेखक ने पात्रों के मन की गहराई, उनकी असुरक्षाएँ, और आत्ममंथन को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। यह तकनीक कहानी को यथार्थ, संवेदनशील, और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समृद्ध बनाती है।

सामाजिक और पारिवारिक दबाव

समाज, परिवार, और जिम्मेदारी का टकराव।

पूरी कहानी में समाज, परिवार, और जिम्मेदारी का दबाव बार-बार सामने आता है। सुधा का विवाह, बिनती की पीड़ा, और चन्दर का आत्ममंथन, सब इसी दबाव के परिणाम हैं। लेखक ने दिखाया है कि कैसे समाज की अपेक्षाएँ, परंपराएँ, और परिवार की जिम्मेदारियाँ, व्यक्तिगत इच्छाओं और प्रेम के रास्ते में बाधा बनती हैं। यह टकराव कहानी को यथार्थ और मार्मिक बनाता है।

Analysis

'गुनाहों का देवता' आधुनिक हिंदी साहित्य का एक कालजयी उपन्यास है, जो प्रेम, त्याग, आत्ममंथन, और सामाजिक दबावों के बीच फँसे युवा मन की गहराइयों को उजागर करता है। धर्मवीर भारती ने इस उपन्यास के माध्यम से न केवल प्रेम की मासूमियत और उसकी जटिलता को दिखाया, बल्कि यह भी बताया कि समाज, परिवार, और जिम्मेदारी के दबाव में व्यक्ति कैसे अपने सच्चे भावों, इच्छाओं, और सपनों को कुचल देता है। चन्दर और सुधा का रिश्ता भारतीय समाज की उस विडंबना को दर्शाता है, जहाँ प्रेम को त्याग, कर्तव्य, और सामाजिक मर्यादा के नाम पर बलिदान कर दिया जाता है। उपन्यास का सबसे बड़ा संदेश यही है कि जीवन में प्रेम, आत्मा की गहराई, और सच्चाई सबसे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन समाज की जकड़न, परंपराएँ, और जिम्मेदारियाँ अक्सर इन्हें कुचल देती हैं। आज के समय में भी यह उपन्यास उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि युवा आज भी अपने सपनों, प्रेम, और जिम्मेदारियों के बीच उलझे हुए हैं। 'गुनाहों का देवता' हमें यह सिखाता है कि आत्मा की आवाज, सच्चे प्रेम, और आत्मसम्मान को कभी नहीं खोना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

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समीक्षाएं

4.34 में से 5
औसत 5.7K Goodreads और Amazon से रेटिंग्स.

गुनाहों का देवता by Dharamvir Bharati is a 1949 Hindi classic exploring love, sacrifice, and societal constraints. Readers praise its beautiful prose, emotional depth, and realistic portrayal of relationships between Chander and Sudha. Many describe it as heartbreaking, with complex characters torn between platonic love and physical desire. The novel examines how societal expectations force tragic decisions. While most reviewers rate it 5 stars, calling it a timeless masterpiece that explores various shades of love, some critics find Chander's idealism frustrating and the story dated, particularly its portrayal of women and treatment of caste issues.

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लेखक के बारे में

Dharamvir Bharati (1926-1997) was a prominent Hindi writer, poet, and playwright considered among the finest talents in Hindi literature. He wrote गुनाहों का देवता at age 23 in 1949, which became Hindi's highest-selling novel and remains widely popular after 70+ years. His other notable work includes "Suraj Ka Satvan Ghoda" (The Seventh Sun), which was adapted into an acclaimed film by Shyam Benegal. Bharati's writing is celebrated for its pure Hindi language, philosophical depth, and profound understanding of human relationships and emotions. His works explore complex themes of love, morality, and social constructs with remarkable maturity and literary excellence.

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